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Thursday, August 19, 2021

रक्षाबंधन स्पेशल परवल की मिठाई - Rakshabandhan Special Parwal Mithai [ Indian Sweet]


नमस्कार। स्वाद भी सेहत भी ब्लॉग में आपका स्वागत है। आज हम  भाई - बहन के स्नेह के  पवित्र त्योहार  रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में उत्तर भारत में फेमस परवल की मिठाई बनाएँगे। दोस्तों, रक्षाबंधन का त्योहार आने वाला है। आप सभी भाई - बहनों को रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएँ। हिन्दू धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को ही प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा का समापन भी होता है।  इस दिन बहनें अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं , उन्हें राखी बाँधती हैं, उन्हें मिठाई खिलाकर उनका मुँह मीठा करवाती हैं और अपने भाई की लंबी उम्र और सर्व - मंगल की कामना करती हैं। बदले में भाई भी अपनी प्यारी बहनों को यथासंभव  उपहार देते हैं और उनकी हर परिस्थिति में रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन भाई - बहन के परस्पर प्रेम , विश्वास , सहयोग और स्नेह का त्योहार है। इसे '' राखी '', ''सलूनी '' और ''श्रावणी '' आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे न केवल भारत में बल्कि नेपाल में भी मनाया जाता है। भारत में तो रक्षाबंधन मनाने की परंपरा अनंत वर्षों से चली आ रही है। स्कन्द पुराण , पद्म पुराण और भागवत पुराण में कई जगहों पर इसका स्पष्ट  उल्लेख मिलता है। 

श्रीमद भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।  कथा के अनुसार एक बार दानवीर असुरराज  बलि ने 100 यज्ञों को पूर्ण करने का संकल्प लिया। जब बलि 99 यज्ञ पूर्ण कर 100 वाँ  यज्ञ कर रहे थे तो देवराज इंद्र को अपना सिंहासन छिन जाने का भय हुआ, क्यूंकि अगर बलि 100 यज्ञ पूर्ण कर लेते तो वे त्रिलोक विजेता बन सकते थे। इसी डर से देवराज इन्द्र सभी देवताओं के साथ श्री हरी विष्णु की शरण में पहुंचे और उन्हें अपनी परेशानी व भय का कारण बताया। तब विष्णु भगवान ने इंद्र को सहायता का वचन दिया और देवताओं के अनुरोध पर वामन अवतार लेकर 100 वाँ यज्ञ कर रहे बलि के पास पहुंचे और उनसे 3 पग भूमि दानस्वरूप मांगी। अपने गुरु के कई बार मना करने पर भी बलि ने उन्हें तीन पग धरती दान में देने का निर्णय कर लिया। तब प्रभु ने विराट रूप धारण कर एक पग में स्वर्ग लोक और दूसरे पग में पृथ्वी और पाताल लोक नाप लिया। तीसरा पग कहीं रखने की जगह न होने से बलि बहुत लज्जित हुए और उन्होने तीसरा पग अपने सिर पर रखवा लिया। इस घटना के बाद बलि रसातल में चले गए और उन्होने स्वर्ग या पृथ्वी लोक पर राज्य न करने का निर्णय लिया । उनकी इस दानवीरता और सहृदय व्यवहार से विष्णु भगवान इतने प्रसन्न हुए कि उन्होने बलि से कुछ वरदान मांगने को कहा। तब बलि ने अपनी श्रद्धा और भक्ति के बल पर नारायण से दिन रात अपने सम्मुख रहने का वचन ले लिया। इधर क्षीरसागर में जब नारायण नहीं लौटे तब देवी लक्ष्मी को बहुत चिंता होने लगी। तब देवर्षि नारद के सुझाव पर उन्होने पाताल लोक में जाकर असुरराज बलि को अपना भाई बना लिया और उन्हें  राखी बांधी और उपहार स्वरूप बलि से अपना पति मांग लिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। बस तभी से बहनें अपने स्नेह का धागा अपने भाई की कलाई पर बाँधती हैं और उनसे उपहार पाती हैं। 

इसके अलावा एक कथा महाभारत में भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार शिशुपाल  वध के दौरान सुदर्शन चक्र से भगवान श्री कृष्ण की  उंगली में चोट लग गयी और उंगली से रक्त की धारा बहने लगी। तब द्रौपदी ने अपने साड़ी के आँचल को फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली पर पट्टी बांध दी। जिससे प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वे समय आने पर एक - एक सूत का कर्ज अदा करेंगे और हर परिस्थिति में द्रौपदी की रक्षा व सहायता करेंगे और द्रौपदी - चीरहरण के दौरान उन्होने द्रौपदी की साड़ी बढ़ाकर न सिर्फ उनकी लाज बचाई बल्कि अपना वचन भी निभाया। उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसके अलावा भी रक्षाबंधन से संबन्धित अनेकों कथाएँ इतिहास में भी प्रचलित हैं। 

इस दिन घरों में  विभिन्न प्रकार के पकवान बनते हैं, जिनमें सबसे खास होती हैं - मिठाइयाँ। वैसे तो मार्केट में  इस दिन नाना प्रकार की मिठाइयों की धूम रहती है लेकिन फिर भी अपने प्यारे भाई के लिए अपने हाथों से मिठाई बनाने की बात ही कुछ और होती है। इसलिए आज हम परवल की मिठाई बनाएँगे। यह मिठाई परवल , मावा और कुछ ड्राई - फ्रूट्स से बनती है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है। इस मिठाई की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि यह कम समय में और आसानी से बनकर तैयार हो जाती है। तो चलिये अपने भाई के लिए प्यार से परवल की  मिठाई बनाते हैं अपने परस्पर स्नेह की  डोरी को और मजबूत करते हैं। 


सामग्री 

  1. हरे - हरे ताजे परवल - 500 ग्राम 
  2. पाउडर चीनी - 1/4 कप 
  3. मावा / खोवा / खोया - 200 ग्राम 
  4. बादाम - 1/4 कप 
  5. ईलाईची पाउडर - 1 टी- स्पून 
  6. बारीक कटे पिस्ते - 1 टी- स्पून 
  7. केसर के धागे - 4-5 
  8. पानी - 4 कप [ परवल उबालने के लिए ]    
  9. बेकिंग सोडा - 1/2 टी- स्पून [ वैकल्पिक ]

सामग्री - चाशनी बनाने के लिए 

  1. चीनी - डेढ़ कप 
  2. पानी - 1 कप  
विधि 
  1. सबसे पहले परवल को अच्छे से धोकर छील लें और बीच से चाकू की मदद से लंबाई में एक चीरा लगा दें। 
  2. ध्यान रखें कि हमें परवल को इस तरह से बीच से काटना है , जिससे वे दूसरी तरफ से जुड़े रहें। मतलब जैसे  हम स्टफड परवल बनाने के लिए काटते हैं न , ठीक उसी प्रकार से परवल को काटना है। 
  3. इसके बाद उंगली से परवल के अंदर का सारा बीज निकाल दें और  साथ ही ये भी ध्यान रखें कि परवल टूटे नहीं। ऐसे ही सारे परवालों के बीज निकालकर तैयार कर लें और उन्हें एक तरफ प्लेट में रख दें। 
  4. इसके  बाद एक बड़े भगौने या बर्तन में 4-5 कप पानी डालकर गैस पर उबलने के लिए रख दें । हमें इतना पानी उबालना है, जितने में सारे परवल अच्छे से डूब जाएँ।
  5. आप चाहें तो पानी में 1/2 टी- स्पून बेकिंग सोडा भी इसी समय डाल सकते हैं। बेकिंग सोडा डालने से परवल में अच्छा हरा रंग आ जाता है। लेकिन यह पूर्ण रूप से वैकल्पिक है।  
  6. भगौने को ढँक दें, जिससे पानी जल्दी उबल जाये। जब पानी में उबाल आने लगे तब गैस धीमी कर दें और ढक्कन हटाकर एक - एक करके सारे परवल पानी में डाल दें। 
  7. मीडियम फ्लेम पर ढँककर परवल को 3-4 मिनट तक पकने दें। पानी में उबालने से परवल का कच्चापन निकल जाता है और वे हल्के से नरम भी हो जाते हैं। 
  8. 4 मिनट बाद गैस बंद कर दें और परवलों  को ऐसे ही ढंका 5 मिनट तक पानी में ही छोड़ दें। 
  9. 5 मिनट बाद ढक्कन हटाकर परवलों को छान लें और एक जाली पर रख दें जिससे उनका पूरा पानी निकल जाये। 
  10. तब तक चीनी की चाशनी बनाकर तैयार कर लें। इसके लिए एक पैन या कड़ाही में डेढ़ कप चीनी और 1 कप पानी डालकर गैस पर रख दें। 
  11. चीनी को चलाते हुए पानी में घुलने तक पका लें। ध्यान रखें कि हमें यहाँ पर कोई तार नहीं बनाना है, चीनी को केवल पानी में घुलाना है। 
  12. अगर आपकी चीनी थोड़ी गंदी है और चाशनी में सफ़ेद - सफ़ेद जैसा कुछ दिखाई दे रहा है तो चाशनी में 2 टी- स्पून दूध डाल दें। इससे चीनी की गंदगी साफ हो जाती है और बिल्कुल साफ चाशनी बनकर तैयार होती है। 
  13. जब चीनी अच्छे से पानी में घुल जाये तब गैस धीमी कर दें और परवलों को थोड़ा हल्के हाथ से दबाते हुए  एक - एक करके चाशनी में डालते जाएँ। जिससे उनका सारा पानी भी निकल जाये और वे टूटे भी नहीं। 
  14. अब परवलों को चाशनी में मीडियम फ्लेम पर 4-5 मिनट तक पकने दें। इस तरह से पकाते हुए चाशनी में 1 तार बनना चाहिए। जब चाशनी में एक तार बनने लगे और  चाशनी थोड़ी गाढ़ी हो जाए , तब गैस बंद कर दें और परवलों को और 2 मिनट तक चाशनी में ही  पड़े रहने दें। 2 मिनट बाद परवलों को चाशनी में से निकालकर एक प्लेट में रख दें, ताकि परवल थोड़े ठंडे हो जाएँ ।  
  15.  जब तक परवल चाशनी में पककर तैयार होते हैं , तब तक गैस की दूसरी  तरफ मावा भूनकर तैयार कर लें। 
  16. इसके लिए एक कड़ाही में मावा डालें और धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए भून लें। मावा को थोड़ा ठंडा  होने के लिए रख दें। 
  17. तब तक बादाम में से 10 बादाम निकालकर बाकी सारे बादामों का पाउडर बना लें और उन 10 बादामों को बारीक - बारीक काट लें। 
  18. जब मावा थोड़ा ठंडा हो जाए , तब मावा में पाउडर चीनी , ईलाईची पाउडर और  बादाम का पाउडर डालकर मिक्स कर दें। परवल में भरने के लिए स्टफिंग बनकर तैयार है। 
  19. इसके बाद एक - एक करके परवल उठाएँ  और उसमें स्टफिंग भर दें और हल्का सा परवल को दबा दें जिससे उसका अच्छा सा शेप आ जाए। 
  20. स्टफिंग पर ऊपर से कटे हुए बादाम , पिस्ते और केसर के धागे चिपका दें और एक प्लेट में रखते जाएँ। 
  21. इसी तरह से सारे परवल भरकर  तैयार कर लें। अगर आपके पास चांदी का वर्क हो तो वो भी थोड़ा - थोड़ा सा सभी परवलों पर चिपका दें। 
  22. स्वादिष्ट परवल की मिठाई बनकर तैयार है। पूरे तरीके से ठंडा हो जाने पर सर्व करें। 
दोस्तों, आशा करती हूँ कि रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में बनाई गई परवल मिठाई की मेरी ये रेसिपी आपको  पसंद आई होगी। इस रक्षाबंधन पर आप भी अपने घर पर अपने प्यारे भाइयों के लिए अपने हाथों से परवल मिठाई बनाएँ और अपने अनुभव और सुझाव मेरे साथ शेयर करें। 

धन्यवाद॥ 

Thursday, August 12, 2021

नाग - पंचमी स्पेशल रेसिपी दिण्ड [ पुरणाचे दिण्ड ] - Naag Panchami Special Naivedya Recipe Puranache Dind

 


नमस्कार। स्वाद भी सेहत भी ब्लॉग  में आपका स्वागत है। आज हम नाग - पंचमी के उपलक्ष्य में दिण्ड बनाएँगे। दिण्ड एक महाराष्ट्रियन व्यंजन है जो नाग - पंचमी के पावन पर्व पर अधिकांश महाराष्ट्रियन घरों में नैवेद्य रूप में बनाया जाता है। दोस्तों ,आप सभी को नाग - पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएँ। नाग - पंचमी प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त नाग पंचमी के दिन नागों / सर्पों की पूजा करते  हैं  तथा उन्हें दूध से स्नान करवाते  है , उन्हें  काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है तथा उन पर और उनके परिवार पर नाग देवता की कृपा सदैव बनी रहती है। स्कन्द - पुराण के अनुसार इस दिन हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध अष्ट नागों [ जैसे ;- शेषनाग , वासुकि नाग , तक्षक नाग , कालिया नाग , मनसा देवी , उलूपी देवी , कार्कोटक और मुचलिन्द आदि ] की विशेष रूप से पूजा की जाती है।  आइये नाग -पंचमी   के पावन पर्व पर इन सभी नाग देवों और देवियों के बारे में थोड़ा संक्षेप में जानने की कोशिश करते  हैं। 

  1. शेषनाग - शेषनाग सब नागों में सबसे प्रमुख , श्रेष्ठ और शक्तिशाली हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन्होने ही समग्र पृथ्वी  को अपने फन पर टिका रखा है , जिससे धरती की स्थिरता बनी रहे। भगवान श्री हरी विष्णु क्षीरसागर में इनके ऊपर ही निवास करते हैं। रामायण में लक्ष्मण जी और महाभारत में बलराम जी इन्हीं के अवतार माने जाते हैं। 
  2. वासुकि नाग - वासुकि नाग शेषनाग के छोटे भाई हैं।  इनके बारे में धार्मिक मान्यता है कि ये भगवान शंकर के गले का हार हैं और उनके गले में शोभा प्राप्त करते हैं। ये वही वासुकि नाग हैं जिन्हें समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों द्वारा मंथन के लिए रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था और मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया था। 
  3. तक्षक नाग - तक्षक नाग,  शेषनाग और वासुकि के छोटे भाई हैं और तीसरे  स्थान पर आते हैं। इनका वर्णन महाभारत में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि  ऋषि शृंगी के श्राप के फलस्वरूप  तक्षक नाग ने ही राजा परीक्षित को डसा था , जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प - यज्ञ किया था , जिसमें इनके प्राणों की रक्षा आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से की थी। 
  4. कालिया नाग - कालिया नाग का वर्णन भागवत पुराण में मिलता है। कालिया नाग वृन्दावन में यमुना नदी में अपने परिवार के साथ निवास करते थे तथा अत्यंत विषैले सर्प  थे, जिसके परिणामस्वरूप यमुना का जल भी विषैला हो गया था। एक बार अपने मित्रों के साथ खेलते हुए बाल कृष्ण की गेंद यमुना में चली गयी। सारे ग्वाल - बाल डर गए, क्यूंकि नदी में अत्यंत विषैला सर्प था। तब श्री कृष्ण यमुना जी में कूद गए और उन्होने न सिर्फ यमुना जी  और वृन्दावन वासियों को कालिया से मुक्त करवाया बल्कि उसके फन पर नाग - नथईया का सुंदर दृश्य भी प्रस्तुत किया। 
  5. मनसा देवी - मनसा देवी भगवान भोले नाथ की मानस पुत्री तथा वासुकि नाग की छोटी बहन मानी जाती हैं।  ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने ही भगवान शिव को हलाहल विष के दुष्प्रभाव से बचाया था। मनसा देवी का मंदिर आज भी हरिद्वार [ उत्तराखंड ] में शिवालिक पहाड़ियों पर स्थित है। नाग - पंचमी पर यहाँ श्रद्धालुओं कि विशेष भीड़ जमा  होती है। 
  6. उलूपी देवी - इनका वर्णन भी महाभारत में मिलता है। ये वासुकि और वृषवाहिनी की पुत्री हैं। इनका विवाह गाँडीव धारी अर्जुन से हुआ था।  इन्द्रप्रस्थ की स्थापना के उपरांत जब अर्जुन राजदूत बनकर मैत्री अभियान पर निकले थे , तब उन्होने सर्वप्रथम नाग - लोक जाने का निश्चय किया था । वहीं उनकी भेंट उलूपी देवी से हुई और उनका विवाह हुआ। उलूपी देवी और अर्जुन का एक बेटा भी था, जिसका नाम इरावान था। 
  7. मुचलिन्द - इनका संबंध बोधि युग से है।  मुचलिन्द ने बोधि - प्राप्ति के दौरान गौतम बुद्ध की रक्षा की थी। ऐसा त्रिपिटिक में वर्णित है। 
  8. कार्कोटक - हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्कोटक नागों के राजा थे, जिन्होने देवराज इन्द्र के अनुरोध पर नल को काटा था, जिसके परिणामस्वरूप नल ऐठनयुक्त तथा कुरूप हो गए थे। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार नाग - पंचमी को हिंदुओं का सबसे पहला त्योहार भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नाग - पंचमी से ही त्योहारों का शुभारंभ होता है। इस दिन देश के अलग - अलग हिस्सों में अलग- अलग किस्म के पकवान बनाने की परंपरा है। जैसे;- राजस्थान में पारंपरिक दाल - बाटी और चूरमा बनाया जाता है। उत्तर- प्रदेश और बिहार में सेंवई और मालपुवा बनाने की परंपरा है। मध्य - प्रदेश में खीर बनाई जाती है और देश के दक्षिण भागों में पायसम बनाने की परंपरा है। महाराष्ट्र में नाग - पंचमी पर दिण्ड बनाया जाता है। दिण्ड चना दाल और गेहूं के आटे से बना और भाप में पका एक मीठा व्यंजन होता है, जिसे पूरन पोली और मोदक का संयोजन माना जाता है, क्यूंकि इसकी सामग्री पूरन  पोली से मिलती है तथा भाप में पकाए जाने की प्रक्रिया मोदक से प्रेरित है। इसे परंपरागत रूप से केले के पत्ते पर रखकर भाप में पकाया जाता है और ऊपर से देशी घी डालकर नैवेद्य रूप में अर्पित किया जाता है तथा बाद में भोग के रूप में ग्रहण किया जाता है। तो चलिये दिण्ड बनाना शुरू करते हैं। 

सामग्री 
  1. चना दाल - 1 कप [ 7-8 घंटे तक पानी में भिंगाई हुई ] 
  2. गुड़ - 1 कप 
  3. गेंहू का आटा - 2 कप 
  4. जायफल पाउडर- 1/2  टी- स्पून 
  5.  नमक - 1/4 टी- स्पून 
  6. ईलाईची पाउडर- 1 टी- स्पून 
  7. पानी - आवश्यकतानुसार 
  8. घी - 3- 4  टी- स्पून 
  9. काजू , बादाम और पिस्ता के बारीक कटे टुकड़े - 1/4 कप   
विधि 
  1. सबसे पहले चना दाल को अच्छे से साफ करके , धो लें और  आवश्यकतानुसार पानी डालकर  भिंगा दें और  7-8 घंटे या पूरी रात के लिए ढंककर छोड़ दें। 
  2. 7-8 घंटे बाद दाल को कूकर में निकाल लें और उसमें 2 कप पानी डाल दें और ढक्कन बंद करके मीडियम आंच पर 3 सीटी आने तक पका लें। 
  3. तब तक दिण्ड बनाने के लिए आटा गूँथकर तैयार कर लें। इसके लिए एक परात में गेहूं का आटा निकालें और उसमें 2 टी- स्पून घी डाल दें और एक बार सूखा ही हाथों से अच्छे से मिक्स कर दें , जिससे आटे के कण - कण में मोयन अच्छे से लग जाये। 
  4. अब आवश्यकतानुसार थोड़ा - थोड़ा पानी डालते हुए पूरी के आटे की तरह थोड़ा सख्त आटा गूँथकर तैयार कर लें और ढँककर 20 मिनट के लिए रेस्ट करने के लिए छोड़ दें। 
  5. जब कूकर में 3 सीटी आ जाए , तब गैस बंद कर दें और कूकर का प्रेशर अपने से निकलने दें। 
  6. जब कूकर का प्रेशर निकल जाये तब दाल को पानी में से छानकर अलग कर दें और दाल को एक पैन में डालकर गैस ऑन कर दें। 
  7. आंच धीमी रखें और 1 कप दाल के लिए 1 कप कुटा हुआ गुड़ पैन में  डाल दें और धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए गुड़ को पिघलने तक पकाएँ। 
  8. जब गुड़ अच्छे से पिघल जाये तब पैन में जायफल पाउडर, नमक , ईलाईची पाउडर और बारीक कटे काजू , बादाम और पिस्ते डाल दें और मिक्स कर दें। 
  9. लो- मीडियम फ्लेम पर लगातार चलाते हुए 15 मिनट तक पका लें। 
  10. 15 मिनट में दिण्ड की स्टफिंग तैयार हो जाती है। जब स्टफिंग अच्छे से पक जाये और हलवे की तरह इकट्ठा होकर कड़ाही / पैन छोड़ने लगे, बस तभी गैस बंद कर दें और स्टफिंग को एक प्लेट में निकालकर थोड़ा ठंडा होने के लिए रख दें। 
  11. जब स्टफिंग थोड़ी ठंडी हो जाएगी तब हम दिण्ड बनाएँगे। तब तक स्टीमर में पानी डालकर उबलने के लिए रख दें और स्टीमर की जाली पर ब्रश की मदद से थोड़ा देशी घी लगा दें , जिससे दिण्ड चिपके नहीं। 
  12. इसके बाद आटे को एक बार और मसलकर थोड़ा चिकना कर लें और आटे से एक नींबू के बराबर लोई तोड़ लें और उसे पूरी की तरह बेल लें। दिण्ड के लिए पूरी नॉर्मल पूरी से थोड़ी मोटी और थोड़ी बड़ी  बेली जाएगी। 
  13. अब पूरी के बिल्कुल  बीचों - बीच 2 टी- स्पून स्टफिंग रख दें और चारों तरफ से मोड़कर दिण्ड को सील कर दें और चौकोर शेप दे दें। 
  14. ऐसे ही सारे दिण्ड बनाकर रख लें। 
  15. जब पानी उबलने लगे और अच्छी भाप बनने लगे तब स्टीमर की जाली पर थोड़ी - थोड़ी दूरी पर दिण्ड रखते जाएँ। एक बार में जितने दिण्ड आसानी से आ सकें रख दें और जाली को स्टीमर में रखकर ढक्कन बंद करके मीडियम आंच पर 15 - 20 मिनट के लिए पकने दें।  
  16. ऐसे ही सारे दिण्ड पकाकर तैयार कर लें। पक जाने पर एक प्लेट में निकालकर ऊपर से थोड़ा सा देशी घी डालकर सर्व करें। 
दोस्तों , आशा करती हूँ कि नाग - पंचमी के उपलक्ष्य में दी गयी अष्ट नागों कीजानकारी और दिण्ड की रेसिपी आपको पसंद आई होगी। आप भी अपने घर पर नाग - पंचमी के उपलक्ष्य में दिण्ड बनाएँ और अपने अनुभव और सुझाव मेरे साथ शेयर करें।  

धन्यवाद॥ 

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Sunday, August 8, 2021

सावन सोमवार व्रत स्पेशल साबुदाना थालीपीठ - Sabudana [ Sago] Thalipeeth


नमस्कार। स्वाद भी सेहत भी में आपका स्वागत है। आज हम सावन सोमवार व्रत स्पेशल साबुदाना थालीपीठ बनाएँगे। दोस्तों, सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है। आप सभी को सावन मास की हार्दिक शुभकामनाएँ। सावन का महीना शिव जी को समर्पित होता है और उन्हें अति प्रिय भी है। पूरे श्रावण मास में वातावरण पूरी तरह से शिव - भक्ति से ओत - प्रोत रहता है।  कहा जाता है कि सावन के पवित्र महीने में शिव जी की पूजा और आराधना करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऋग्वेद के अनुसार वैसे तो पूरा श्रावण मास ही शुभकारी है , लेकिन इसमें भी सावन सोमवार की विशेष महिमा बताई गयी है। हमारे अधिकांश हिन्दू भाई - बहन श्रावण सोमवार का उपवास रखते हैं। पुराणो में बताया गया है कि जो भी भक्त सच्चे मन से सावन सोमवार को शिव जी की पूजा - अर्चना करते हैं , इस दिन उपवास रखते हैं और तन - मन - धन से पूर्णतया शिव भक्ति में रम जाते हैं , उन्हें सभी प्रकार के भौतिक तथा सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है , उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं तथा व्यक्ति जन्म - मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इसलिए आज हम जो भाई - बहन  सावन सोमवार का व्रत रखते हैं उनके लिए साबुदाना थालीपीठ की रेसिपी लाये हैं। 

आपने साबुदाना वडा , साबुदाना खिचड़ी , साबूदाने की खीर आदि तो खाई ही होगी , एक बार साबुदाना थालीपीठ भी ट्राई करें, आपको बहुत पसंद आएगी। साबुदाना थालीपीठ एक महाराष्ट्रियन व्यंजन है , जो व्रत के दिनों में खाया जाता है। यह एक पैनकेक की तरह होता है, जिसकी सामग्री काफी कुछ साबुदाना वड़े से मिलती - जुलती होती है। साबुदाना थालीपीठ मुख्य रूप से साबुदाना , उबले आलू , सिंघाड़े / राजगीरा का आटा , मूँगफली , हरी मिर्च , हरा धनिया और सेंधा नमक आदि डालकर बनाया जाता है। आप इसे किसी भी व्रत में फलाहार के रूप में  बनाकर खा सकते हैं।  यह खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है काफी पौष्टिक भी होता है, क्यूंकि साबूदाने का सेवन काफी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। इसे खाने से शरीर को भरपूर ऊर्जा मिलती है , जिससे व्रत में भी सारा दिन कार्य करने की शक्ति मिलती है। इसमें मौजूद प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट्स मसल्स को मजबूती प्रदान करते हैं। तो चलिये स्वाद और सेहत से भरपूर सावन सोमवार व्रत स्पेशल साबुदाना थालीपीठ बनाना शुरू करते हैं। 

सामग्री 

  1. साबुदाना - 1 कप [ रात भर पानी में भिंगाया हुआ ] 
  2. उबले व मैश्ड आलू - 1/2 कप 
  3. राजगीरा / सिंघाड़ा / कुट्टू का आटा - 1 टेबल - स्पून 
  4. भुनी व दरदरी कुटी हुई मूँगफली - 2 टेबल - स्पून 
  5. बारीक कटी हरी मिर्च - 2 
  6. बारीक कटा / कद्दूकस किया हुआ अदरक - 1/2 टी- स्पून 
  7. बारीक कटी हरी धनिया - 2 टेबल - स्पून 
  8. जीरा - 1 टी- स्पून 
  9. काली मिर्च पाउडर - 1/2 टी- स्पून 
  10. सेंधा नमक - स्वादानुसार 
  11. पानी - 1 कप [ साबुदाना भिंगाने  के लिए ] 
  12. घी - थालीपीठ सेंकने के लिए 
सर्व करने के लिए सामग्री - दही 

विधि 
  1. सबसे पहले साबुदानों को अच्छे से साफ करके 3-4  बार पानी डालकर धो लें। अब 1 कप पानी डालकर साबुदानों को ढँककर रात भर के लिए फूलने के लिए छोड़ दें। 
  2. सुबह एक बड़े बाउल में साबुदानों को निकाल लें। साबुदानों में 1/2 कप उबले व मैश्ड आलू डाल दें। 
  3. इसके बाद साबूदाने में भुनी व दरदरी कुटी मूँगफली , राजगीरा / सिंघाड़ा / कुट्टू का आटा , बारीक कटी हरी मिर्च , बारीक कटा हरा धनिया , कद्दूकस किया हुआ / बारीक कटा अदरक , जीरा , काली मिर्च पाउडर और सेंधा नमक डाल दें और अच्छे से सारी चीजों को मिक्स कर दें। 
  4. अगर मिश्रण थोड़ा सूखा लग रहा हो तो 1 टेबल - स्पून पानी भी मिलाया जा सकता है।
  5. आप चाहें तो मिश्रण में 1 टी- स्पून नींबू का रस भी डाल सकते हैं।  
  6. मिश्रण को अच्छे से मिक्स करते हुए गोल शेप दे दें । 
  7. थालीपीठ के मिश्रण को 3 बराबर भागों में बाँट लें। इतने मिश्रण से 3 मीडियम साइज़ के थालीपीठ बनेंगे। 
  8. अब एक पैन में 2 टी- स्पून घी डालकर धीमी आंच पर गरम होने के लिए रख दें। 
  9. जब घी अच्छे से गरम हो जाए , तब मिश्रण का एक भाग उठाकर तवे पर रख दें। आंच धीमी ही रहने दें। 
  10. अब अपने हाथों में थोड़ा पानी लगाकर गीला कर लें और मिश्रण को गीले हाथों से दबाते हुए फैलाते जाएँ। 
  11. थालीपीठ में 3-4 जगह उंगली से छेद कर दें , इन छेदों में से घी डाला जाएगा। 
  12. अब थालीपीठ के चारों तरफ और छेदों में घी डाल दें और मीडियम आंच पर थालीपीठ को ढँककर एक साइड से पकने दें। थालीपीठ को एक तरफ पकने में 4-5 मिनट का समय लगता है। 
  13. 4-5 मिनट बाद ढक्कन हटाकर सावधानी से थालीपीठ को पलट दें और दूसरे तरफ से भी घी लगाकर थालीपीठ को ढँककर अच्छे से पका लें। 
  14. ऐसे ही सारे थालीपीठ बनाकर तैयार कर लें। 
  15. स्वादिष्ट और कुरकुरे साबुदाना थालीपीठ बनकर तैयार हैं। इसे दही  के साथ गरमागरम सर्व करें। 
दोस्तों , आशा करती हूँ कि सावन सोमवार व्रत स्पेशल साबुदाना थालीपीठ की मेरी ये रेसिपी आपको पसंद आई होगी। आप भी अपने घर पर उपवास के दिनों में साबुदाना थालीपीठ बनाएँ और अपने अनुभव और सुझाव मेरे साथ शेयर करें। 

धन्यवाद॥ 

अन्य स्वादिष्ट रेसिपीस जानने के लिए क्लिक करें : https://www.swaadbhisehatbhi.com/

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